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Aruna Shanbaug: The Fighter passes away after 42 years of Coma

ये कहानी ख़ुशगवार और खूबसूरत मुंबई (उस समय का बम्बई) की है जो की नवंबर 1973 से शुरू होती है. अरुणा शानबाग एक 25 साल की जवान और स्फूर्ति से भरी नर्स थी जो की एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल में एक डॉक्टर के अंतर्गत काम करती थी. वो एक आत्मविश्वास से लबरेज़ लड़की थी जो की 18 की उम्र में अपना घर छोड़ कर सपनो की नगरी बम्बई आई थी नर्स बनने. उसने अपने दम पर नर्सिंग का कोर्स पूरा किया था और खुद ही ये नौकरी भी ढूंढी थी और ये वो समय था जब वो अपने चाहने वाले के साथ अपना घर बसाने वाली थी और उसकी सगाई हो चुकी थी.

वो अपना घर अपने सीनियर डॉक्टर डॉ. संदीप देसाई के साथ बसाने वाली थी और उसके डॉक्टर होने के नाते उसका लगभग पूरा ही दिन उनके साथ बीतता था. डॉ संदीप जो की एक एम.बी.बी.एस. थे, उस समय एम.डी. के एग्जाम की तैयारी कर रहे थे. सबकुछ एकदम अच्छा चल रहा था, यहाँ तक की उनकी शादी की तारीख भी तय हो गई थी की वो मनहूस दिन 27 नवंबर आया.

एक वार्डबॉय सोहनलाल भरथा वाल्मीकि उसी अस्पताल में अरुणा के अंतर्गत काम करता था. अरुणा एक नियम कायदे वाली लड़की थी जिसे की अनुशाशनहीनता बिलकुल भी पसंद नहीं थी. सोहनलाल के काम करने के ढंग की वजह से उसकी और अरुणा की अक्सर लड़ाई होती रहती थी मगर किसी ने भी ये नहीं सोचा था की ये लड़ाई एक दिन बदले का रूप ले लेगी और सोहनलाल को एक ऐसा कदम उठाने को प्रेरित कर देगी जिसकी गूँज आने वाले दशकों तक सुने देगी.

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शाम का करीब 6 बजा था जब की अरुणा की रोज़ की शिफ्ट ख़तम हुई थी. अरुणा को अपने कपडे बदलने थे और इसके लिए वो अस्पताल के बेसमेंट में उस जगह पहुची जहाँ कुत्तों पर रिसर्च की प्रयोगशाला थी. वैसे वो जगह कपडे बदलने की नहीं थी मगर चूँकि नर्स रूम कुछ दूरी पे था, सो अरुणा ने वहीँ कपडे बदलने की सोची. सोहनलाल एक लम्बे समय से ऐसे ही किसी मौके की फ़िराक में था और उस दिन उसे वो मौका मिल गया. उसने पूरे समय अरुणा का पीछा किया और मौका पाते ही पहले तो उसने अरुणा की साथ अप्राकृतिक सेक्स किया और उसके बाद अरुणा के गले को कुत्तों को बाँधने वाली ज़ंजीर से मरोड़ दिया और उसके बाद ये सोच कर वहां से निकल गया की अरुणा मर गई होगी.

शाम 6 बजे के इस हमले के बाद से सुबह अगली शिफ्ट शुरू होने तक अरुणा वहीँ पड़ी रही और किसी को कानो-कान खबर भी नहीं हुई. अरुणा मरी तो नहीं थी मगर उसका दिमाग मर चुका था. सोहनलाल ने जिस बेरहमी से उसकी गर्दन कुत्ते की ज़ंजीर से दबी थी उससे उसके दिमाग को ऑक्सीजन पहुचने वाली नसें फट गई और जब तक अरुणा को वहां पाया गया, बहुत देर हो चुकी थी.